Stage Fear

Daily writing prompt
Have you ever performed on stage or given a speech?

I have always been nervous about speaking on stage, but I knew I had to overcome this fear sooner or later. In 2020, I started my writing journey and felt free, but I was still scared of performing in front of an audience. When I became the vice president of the literature club in my college, I saw it as an opportunity to conquer this fear because I would have to speak on stage to represent my society. When I first did, I honestly panicked at the sight of such a big crowd. I asked my team members to dim the lights on the audience, closed my eyes and recited a poem about a breakup. The crowd was quiet and still, and I did not feel afraid. I didn’t experience any palpitations, my hands didn’t get cold, and I didn’t sweat. Perhaps because the audience was of my age, they were able to relate to my poem, which was an achievement for me. The experience was surreal, and since then, there has been no looking back!

हिम्मत

किसी के बिन, किसी की यादों के बिन

तुझमें जीने की हिम्मत है?

खुद बे-रंग होकर, आलिम में रंग बिखेरने की ताक़त है?

पुराने रिश्तों को ख़याल से उतारने के बाद,

आगे की सीढ़ियाँ चढ़ने की चाहत है?

दोष तो सब लगाते है मगर ,

आँखें बंद कर विश्वास करने की तेरी नीयत है?

यारों की मोहब्बत का यक़ीन कर लिया तुमने पर,

फूलों में छिप्पे उस ख़ंजर को देखने की तेरी नज़र है?

अपनों के प्यार के बिना,

क्या दौलत की कोई क़ीमत है?

तेरी ऊलफ़त में तो चाँद-तारे भी निसार कर दूँ मगर,

तुझमें खुद क़ुर्बान होने की हिम्मत है?

दूसरों को हँसा कर,

तेरी खुद जी उठने की मुराद है?

बुराई के इस फ़लक में,

ख़ुदा का परिंदा बन, उड़ जाने की तुझमें हिम्मत है?…

-काया

सिफ़ारिश

क्यूँ दिल का दर्द खतम ही नहीं होता ,

सब कुछ होने के बावजूद भी

सूना-सूना सा होता ।

आँखें बंद करूँ तो,

नींद ना आए,

खोलु तो

नैन भर आए।

ना जाने क्यूँ है यह,कैसे है यह

अजीब सी दुविधा

सब कुछ हो के भी कुछ ना फलता।

खुद से तंग आके कुछ पल चाँद को दिखाए,

पूर्णमाशी की रात,

गहरी थी पर समझ में आयी एक बात,

की चाँद तो हमेशा ही पूरा था

यह तो केवल परछाइयों का कोहरा था।

उस दिन मैंने खुद को सम्भाला , खुद को पहचाना

खुद को खुद से प्रेम करना सिखाया

क्यूँकि प्रेम ही आधार है, प्रेम ही संसार है

खुद से ख़ुदा तक का सफ़र है

कृष्णा का गीत और अब मेरी प्रीत है ।

बस परछाइयों को ढालना है

चाँद को निखारना है ,

सब कुछ हो के भी सब कुछ पाना है ।

काया

वजूद

आज का दिन मानो कुछ नया सा है,

पेड़ों के जंगल में मानो छाया सा है ।

इतना सुकून है आज की लहरों में, ख़ुशी है लोगों के चेहरों पे।

एक ख़ुशबू सी तैरती जैसे हवा में, ख़ुशबू जो बे-आवाज़ है।

ख़ुशबू जैसे मानो दिल गुलज़ार हो गया हो।

साँझ का ढलता सूरज कुछ अलग ही रंग बिखेर रहा है, कुछ रंग ले रहा है,

जैसे मानो कल सवेरा ही ना हो , बस यही थम सा गया हो।

पत्तियों की सरसराहट , कानो को कुछ इस तरह छूँ कर गयी जैसे मानो ,

कृष्ण की गीता हो ,

जिस तरह हर प्राण जीता हो।

जैसे अपना वजूद मिल गया हो ।

मौसम आज इतना रूहानी,

मानो अम्बर से बरसता पानी।

ठंडी सी मिट्टी पर शरीर यूँ ही बेजान पड़ा रहा,

समय की जुस्तजू से आज बिलकुल नहीं लड़ा।

शायद खुदा का यहीं था फ़रमान,यूँही धड़कती रहेगी यह जान।

बस कुछ इसी तरह मैंने लिया अपना मुक़्क़दर चुन,

अंततः कुन-फाया-कुन

-काया

रास्ता

मुसाफ़िर बन ज़िंदगी का रास्ता ढूँढ रहे है हम,

ख़ुशियों की बूँदों को बांध कर लहरे समेट रहे है हम।

पैरो तले जो भी मिलता, क़िस्मत समझ समझौता कर लेते है हम।

एक तीली को मशाल समझ जलाते रहते है हम।

पर कभी ना सोचा , कभी ना ढूँढा , आख़िर मंज़िल कहा है ?

अपनी क़िस्मत की डोर भगवान के हाथों में थाम कर चिंता मुक्त हो जाते है हम,

लेकिन कभी वही डोर सम्भाल कर तो देखो,

हाथों की रेखाएँ बदल कर तो देखो,

खुद को भगवान का हिस्सा समझ कर तो देखो।

जिस दिन इन तीन चीज़ों की प्राप्ति कर लोगे , समझ आजाएगा

ज़िंदगी का रास्ता और कोई नहीं तुम खुद हो।

— काया

सट्टा

ज़िंदगी एक सट्टा हैं जनाब,

हर बार मुनाफ़ा होना ज़रूरी नहीं।

नुक़सान को बर्दाश्त कर,

मंज़िल से आगे बह कर मंज़िल की तलाश कर।

लेन-देन तौफ़ो का नहीं, जज़्बातों का कर।

ख़रीदारी नफ़रत की नहीं , बे-पनाह प्यार की कर।

सोच समझ कर लगाना ज़िंदगी के दाँव,

कही दे ना दे तुझे गहरे घाव।

मगर ख़तरा मोल लेना का अलग ही मज़ा हैं ,

यही तो सट्टा हैं, तू क्यूँ डरता हैं?

काया

हयात

हयात की इस महफ़िल में मरना सबको है,

तो क्यूँ ना ज़िंदगी का लुत्फ़ उठा ले।

हर दर्द का अंत होता है,

आख़िर बारिश के बाद ही तो मौसम सुहावना होता है।

अपनी ख़ामियों को क़बूल कर ऐ बंदे,

खुद से प्यार बे-शुमार कर।

महसूस कर अपनों की क़ुरबत,

यहीं साथ देंगे तेरा अंत तक ।

हयात की बंदिशों के हम असीर हुए ,

नफ़सियाती तकलीफ़ के गहरे कुएँ।

क़िस्मत पर ऐतबार कर ऐ बंदे ,

मुस्तकबिल का लिखा कोई तबदील नहीं कर सकता ।

काया

पिता

जीवन के अंधकार में जैसे जलता दीया,

अपने लिए नहीं सिर्फ़ दूसरों के लिए काम किया ।

अपना प्यार व्यक्त करना नहीं आता ,

मगर दुख के समय वह सबसे पहले मदद करने आता।

जो सिर्फ़ अपनो के लिए जीता ,

वह और कोई नहीं है मेरे पिता।

I love you dad♥️

हर्षित

मैं यायावर , मैं संत हूँ

मैं यदा -कदा, मैं अनंत हूँ ।

मैं कर्तव्य राह की एक मिसाल ,

मुट्ठी में होगा अगला साल ।

मेरे दिल में कोई दुःख नहीं है ,

मैं हर्षित हूँ जनाब

मेरा कोई नाम नहीं है ।

काया

** I wrote this poem for a friend of mine.**